
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ द्वारा संसद के मानसून सत्र के पहले ही दिन अपने पद से अचानक इस्तीफा देने की घोषणा ने पूरे राजनीतिक हलकों में हलचल मचा दी। उपराष्ट्रपति होने के नाते वे राज्यसभा के सभापति भी थे और सत्र की कार्यवाही की शुरुआत उन्होंने खुद की। लेकिन शाम होते-होते उन्होंने स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए पद से त्यागपत्र दे दिया। धनखड़ स्वतंत्र भारत के पहले ऐसे उपराष्ट्रपति बन गए हैं जिन्होंने संसद सत्र के दौरान इस्तीफा दिया हो। उनके इस कदम के पीछे क्या केवल स्वास्थ्य कारण हैं, या फिर इसके पीछे कोई गहरी राजनीतिक पटकथा छिपी है, इस पर देश की राजनीति में चर्चा गर्म है।
सत्तापक्ष की चुप्पी और विपक्ष की सहानुभूति
धनखड़ ने कहा कि वे स्वास्थ्य कारणों से पद छोड़ रहे हैं, लेकिन यदि स्वास्थ्य ही कारण था तो क्या वे सत्र शुरू होने से पहले इस्तीफा नहीं दे सकते थे? और यदि तबियत इतनी बिगड़ी हुई थी, तो क्या वे सत्र की शुरुआत में सभापति के आसन पर बैठ सकते थे?
यह भी गौर करने लायक है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने X (पूर्व ट्विटर) पर उन्हें सिर्फ शुभकामनाएं दीं, लेकिन उनकी सेवाओं के प्रति किसी भी प्रकार की प्रशंसा नहीं की, जो सामान्यतः ऐसे अवसरों पर की जाती है। इसके साथ ही, न तो भाजपा और न ही सरकार के किसी वरिष्ठ मंत्री ने उन्हें मनाने या फैसले पर पुनर्विचार की अपील की।
हैरानी की बात यह भी है कि कांग्रेस, जो कभी धनखड़ के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लेकर आई थी, अब उन्हें मनाने की बात कर रही है। कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा कि इस्तीफे की वजह सिर्फ स्वास्थ्य नहीं हो सकती।
क्या यह सब कुछ मानसून सत्र के पहले दिन हुआ?
संसद सत्र के पहले दिन राज्यसभा में विपक्ष द्वारा न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव को धनखड़ द्वारा स्वीकार कर लेना एक बड़ा कारण बताया जा रहा है, जिससे सरकार असहज हुई। जबकि कुछ महीने पहले ही न्यायमूर्ति वर्मा के घर से भारी मात्रा में नकदी बरामद हुई थी।
साथ ही, विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे को सदन में सरकार पर लंबा हमला करने का मौका देना भी सत्ता पक्ष को रास नहीं आया। उस दौरान केंद्रीय मंत्री जेपी नड्डा ने टिप्पणी की कि “आप जो बोल रहे हैं वह रिकॉर्ड नहीं हो रहा,” जो संसदीय परंपराओं के लिहाज से सभापति के अधिकार क्षेत्र में आता है।
क्या नड्डा की इस टिप्पणी को धनखड़ ने निजी अपमान के रूप में लिया? इसके बाद जब बिजनेस एडवाइजरी कमेटी की बैठक बुलाई गई, तब जेपी नड्डा और किरण रिजिजू का उसमें शामिल न होना यह संकेत दे गया कि इस्तीफे की पटकथा तैयार हो चुकी थी।
क्या कांग्रेस से बढ़ती नजदीकियां बनीं कारण?
धनखड़ ने हाल में कुछ ऐसे बयान दिए, जिनसे यह संकेत मिलने लगे थे कि वे कांग्रेस सहित विपक्ष से सौम्य और संवादशील रुख अपना रहे थे। शायद यही उनकी स्वायत्त भूमिका सत्ता पक्ष को अस्वीकार्य लगी।
राज्यपाल से लेकर उपराष्ट्रपति तक की उनकी यात्रा में उन्होंने कई बार यह दिखाया कि वे विवादों से परहेज़ नहीं करते, चाहे वह ममता सरकार से टकराव हो या फिर राज्यसभा में सरकार को असहज करने वाले फैसले।
धनखड़ के इस्तीफे की आधिकारिक वजह चाहे जो भी बताई गई हो, लेकिन घटनाक्रम से साफ है कि यह एक राजनीतिक असहजता का परिणाम है। उनकी स्वतंत्र कार्यशैली और हाल के निर्णय सत्ता पक्ष की रणनीति के प्रतिकूल लगने लगे थे।
अब जब वे पद छोड़ चुके हैं, यह देखना दिलचस्प होगा कि नया उपराष्ट्रपति कौन होगा और क्या वह केंद्र सरकार की अपेक्षाओं पर खरा उतरने वाला चेहरा होगा।